*भाषा*


भाषा भावाभिव्यक्ति का सरस माध्यम है| जिस माध्यम से मनुष्य अपने भाव, इच्छा, विचार तथा आकांक्षा आदि को दूसरों व्यक्तियों के सामने प्रकट करता है उसे "भाषा" कहते हैं|

     "भाषा" शब्द संस्कृत के 'भाष्'  धातु से निर्मित है,जिसका अर्थ होता है- "व्यक्त वाणी"|


परिभाषाएँ:-


* कामता प्रसाद गुरु के अनुसार,  "भाषा वह साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचार दूसरों पर भली-भाँति स्पष्ट करता है और दूसरों के विचार स्वयं स्पष्टतया समझता है|"


* आचार्य सीताराम चतुर्वेदी के शब्दों में,  "मुख से बोली जाने वाली, कान से सुनी जाने वाली सर्वसामान्य द्वारा स्वीकृत उस मेल को भाषा कहते हैं जो कहने वाले की बात को सुनने वाले को समझा सके|"

* पाणिनी ने कहा है- 'व्यक्ति भाषा समुच्चारणो इति भाषा|' अर्थात् सम्यक् रूप से उच्चरित की गयी वाणी ही भाषा है|

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है वस्तुतः मनुष्य की व्यक्त वाणी ही भाषा है| भाषा ही वह सेतु है जो लेखक के विचारों को पाठक के हृदय तक पहुँचाती है| भाषा सम्प्रेषण का सशक्त माध्यम है|




         भाषा की प्रकृति/ विशेषताएँ
 
* भाषा ध्वनि है- भाषा ध्वनि संकेतों पर आधारित है| भाषा मनुष्य की वागेन्द्रियों से निःसृत  ध्वनि संकेत ही हैं लेकिन केवल सार्थक ध्वनियों को ही भाषा की परिधि में शामिल किया जाता है|



* भाषा व्यवस्था है-  भाषा  शब्द रचना, वाक्य रचना आदि पर व्यवस्थित रूप में दिखायी देती है| उदा• "राम खाता है"(व्यवस्थित वाक्य)  इस  वाक्य को यदि "है खाता राम" लिखा जाये तो अर्थ स्पष्ट नहीं होता|


* भाषा सम्प्रेषण का सशक्त माध्यम है-  यह भाषा का प्रमुख गुण है| मनुष्य अपने  विचारों को प्रकट करने के लिये सम्प्रेषण के विविध साधनों(लिखित,मौखिक अथवा संचार माध्यम{दृश्य-श्रव्य}) का चयन करता है|



*भाषा पैतृक नहीं वरन् अर्जित सम्पत्ति है-  व्यक्ति भाषा का अर्जन करता है न कि उसे पैतृक रूप में प्राप्त करता है|
उदा• 'मोगरी नामक बालक मनुष्य होते हुए भी भेड़ियों की संगत में रहने के कारण उन्हीं की भाषा को अपना लेता है न कि अपने माता- पिता द्वारा बोली जाने वाली भाषा|




* भाषा परिवर्तनशील है- भाषा की प्रकृति परिवर्तनशील होती है| इस संदर्भ में एक उक्ति प्रचलित है- " कोस- कोस पर पानी बदले/ तीन कोस पर बानी|"

अंग्रेजी कवि Words worth की उक्ति यहाँ प्रासंगिक ठहरा है-"Change is law of nature".


* भाषा संयोग  से वियोग की ओर अग्रसित होती है- 
उदा• राम पठति| (संयोगावस्था)
राम पढ़ता है| (वियोगावस्था


भाषा नैसर्गिक एवं अविच्छिन्न प्रवाह है-  इस अर्थ में भाषा को 'बहता नीर' माना जाता है| भाषा मानव समाज के आरम्भ से अनवरत चलती आ रही है|

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